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सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

उर्वरको में मिलावट की जाँच कैसे करें


                                      उर्वरको में मिलावट की जाँच कैसे करें 

खेती-किसानी  मे प्रयोग किए  जाने वाले कृषि निवेशो में  उर्वरक सबसे महँगा कृषि आदान  है, जिसका   फसल उत्पादन बढाने  में 15-50 प्रतिशत का योगदान रहता  है। अनेक  क्षेत्रों में उर्वरकों की सीमित उपलब्धता और काला बाजारी से स्तरहीन उर्वरकों की बिक्री आदि के कारण कुछ  उर्वरक विनिर्माता फैक्ट्रियों तथा विक्रेताओं द्वारा नकली एवं मिलावटी उर्वरक बनाकर बाजार मे बेचने लगते हैं। बहुधा किसान भाई को शिकायत रहती है की भरपूर खाद-उर्वरक उपयोग करने के बावजूद भी उपज में वांछित बढोत्तरी अर्थात मुनाफा नही हो रहा है। इसकी प्रमुख वजह घटिया-स्तरहीन उर्वरको का प्रयोग ही है। यह सच है की घटिया या  मिलावटी उर्वरको के उपयोग से फसलों के उत्पादन मे गिरावट आती है। उर्वरक उपयोग से वांछित लाभ तभी मिल सकता है जब उनमे पोषक तत्वों की सही मात्रा उपलब्ध हो। अतः किसान भाईओं को  बाजार में उपलब्ध उर्वरकों का  परीक्षण कर उर्वरक क्रय करना चाहिए, जिससे मिलावट की धोखाधड़ी से बचा जा सकता है ।

प्रमुख उर्वरकों मे सामान्य पदार्थो र्की मिलावट

उर्वरक मिलावटी पदार्थ
यूरिया साधारण नमक, म्यूरेट, आफ पोटाश
डी.ए.पी. सुपर फास्फेट, राक फास्फेट, एन.पी.के.मिश्रण, चिकनी मिट्टी
सुपर फास्फेट क्ले मिट्टी, जिप्सम की गोलियाँ
एम.ओ.पी. बालू, साधारण नमक
जिंक सल्फेट मैग्नीशियम सल्फेट

                                       उर्वरको में  मिलावट : परिक्षण  की विधियाँ 


1.यूरिया-46 % नत्रजन 

        यह प्रमुख पोषक तत्व नत्रजन प्रदान करने वाला उर्वरक है जिसमे 45-46 प्रतिशत नत्रजन तत्व पाया जाता है। कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक मात्रा में इस उर्वरक का उपयोग किया जाता है। प्रतिवर्ष फसल बोआई के समय यूरिया की बाजार में कमी देखी जाती है जिसके कारण कई विक्रेता घटिया अथवा मिलावटी यूरिया किसानो को बेच देते हे जिससे किसान को बांछित लाभ नही हो पाता है। अतः यूरिया खाद खरीदने से पहले उसकी गुणवत्ता की जांच करना उचित होता है। यूरिया के सुधिकरण की जाँच निम्न प्रकार से की जा सकती है।
1. शुद्ध यूरिया चमकदार, लगभग समान आकार के दाने वाला, पानी में पूर्णतया घुल जाना, घोल को छूने पर शीतल की अनुभूति, गर्म तवे पर रखने से पिघल जाना, आँच (लौ) तेज करने पर कोई अवशेष न बचना, आदि सामान्य बातें हैं।
2. एक  ग्राम यूरिया (उर्वरक) परखनली में लें तथा 5 मिली. आसुत जल मिलायें और पदार्थ को घोलें एवं 5-6 बूँद सिल्वर नाइट्रेट घोल मिलायें, दही जैसा सफेद अवशेष का बनना यह प्रदर्शित करता है कि पदार्थ मिलावटी है। किसी भी अवशेष का न बनना शुद्ध यूरिया को बताएगा।
3. एक चम्मच यूरिया परखनली में लें तथा पिघलने तक गर्म करें, ठंडा होने पर 1 मि.ली.पदार्थ पानी में घोलें तथा बूँद-बूँद कर 1 मि.ली. बाई यूरेट घोल मिलाये,गुलाबी रंग आता है, तो यूरिया शुद्ध है और यदि गुलाबी रंग नहीं आता है तो समझें मिलावट है।
4. हथेली पर थोड़ा पानी लें, 2 मिनट बाद जब हथेली और पानी का ताप अनुरूप (एकसा) हो जाये तब 10-15 दानें यूरिया के डालें, शुद्ध यूरिया का घोल स्वच्छ होगा, यदि सफेद अवशेष आता है तो यूरिया मिलावटी है।

2. डाय अमोनियम फॉस्फेट  (डी.ए.पी .) -18 % नत्रजन व 46% फॉस्फोरस 

              यह यूरिया के बाद सर्वाधिक मात्रा  में उपयोग में लाया जाने वाला महत्वपूर्ण उर्वरक है जिसमे 18 % नत्रजन और 46 % फॉस्फोरस पाया जाता है। इसके सुधिकरण की जांच निम्नानुसार की जा सकती है। 
1. सामान्यतः शुद्ध डी.ए.पी. के दानो का आकार एकदम गोल नहीं होता, डी.ए.पी. के दानो को गर्म करने या जलाने पर दाने साबूदाने की भांति फूलकर लगभग दोगुने आकार के हो जायें तो वह शुद्ध होगा। डी.ए.पी. के दानों को लेकर फर्श पर रखें, फिर जूते के तले से रगड़ें, शुद्ध डी.ए.पी. के दाने आसानी से नहीं टूटेते, यदि आसानी से टूट-फुट जायें तो डी.ए.पी. में मिलावट है।
2. डी.ए.पी.में नाइट्रोजन की जाँच के लिए 1 ग्राम पीसे डी.ए.पी. में चूना मिलायें, सूँघने पर यदि अमोनिया की गंध आती है तो डी.ए.पी. में  नाइट्रोजन उपस्थित है यदि नही तो डी.ए.पी. मे मिलावट हो सकती है।
3. एक ग्राम पिसा नमूना परखनली में लें, 5 मि.ली. आसुत जल (डिस्टिल्ड वाटर ) मिलायें और हिलायें, फिर 1 मिली. नाइट्रिक अम्ल मिलायें,फिर हिलायें, यदि यह घुल जायें एवं घोल अर्ध-पारदर्शी हो जायें तो डी.ए.पी. शुद्ध है यदि कोई पदार्थ अघुलनशील बचता है, तो मिलावट है।
4. एक ग्राम पिसा हुआ  नमूना लें तथा 5 मि.ली. आसुत जल में घोलें, हिलाये, फिल्टर पेपर से छाने, उस फिल्ट्रेट में 1 मिलीलीटर सिल्वर नाइट्रेट घोल मिलायें, पीले अवक्षेप का बनना । जो 5-6 बूँद नाइट्रिक एसिड को मिलाने पर घुल जाये तो पदार्थ मे फास्फेट उपस्थित है और डी.ए.पी. शुद्ध है। यदि अवक्षेप सफेद है तो मिलावट है।

3.म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (एम.ओ.पी.)- 60 % पौटाश 

           अधिकाँश भारतीय मिट्टियो में पोटाश तत्व की कमी नही रहती है फिर भी संतुलित उर्वरक उपयोग के लिए नत्रजन और फॉस्फोरस के साथ पोटेशियम युक्त उर्वरक मसलन म्यूरेट ऑफ़ पोटाश देने की अनुसंशा की जाती है। इसकी सुधता की परख निम्नानुसार की जा सकती है।
1. एक  ग्राम उर्वरक परखनली में लें, 5 मिली आसुत जल मिलायें व अच्छी तरह हिलायें अधिकांश उर्वरक धुल जाये तथा कुछ अघुलनशील कण पानी की सतह पर तैरें तो शुद्ध पोटाश (एम.ओ.पी.) होगी, यदि अधिकांश अघुलनशील पदार्थ परखनली के तले पर बैठ जाये तो समझे उर्वरक मे मिलावट है।
2. शुद्ध पोटाश (एम.ओ.पी.) पानी में पूर्णतया घुलनशील, रंगीन पोटाश (एम.ओ.पी.) का लाल भाग पानी पर तैरता है यदि ऐसा है तो पोटाश (एम.ओ.पी.) शुद्ध है अन्यथा नहीं, शुद्ध पोटाश (एम.ओ.पी.) के कण नम करने पर आपस में चिपकते नहीं।
3. एक चम्मच उर्वरक को 10 मिली,जल में घोंले, निथरे भाग से 2 मि .ली.घोल में 2 मि.ली. तनु 
हाइड्रो क्लोरिक एसिड का  घोल मिलायें, इसमे 1 मि.ली. बेरियम क्लोराइड मिलाने पर यदि स्वच्छ घोल बनता है तो उर्वरक शुद्ध है और यदि सफेद अवक्षेप है तो समझे  मिलावट है।

4. सिंगल सुपर फास्फेट (एस .एस . पी .)-16 % फॉस्फोरस 

       नत्रजन के बाद दूसरा आवश्यक पोषक तत्व है तथा फसलो की उपज बढाने में कारगर सिद्ध हो चूका है। इसकी सुधता की जांच निम्नानुसार की जा सकती है।
1. दानेदार पाउडर, काला भूरा आदि रंगों में से एक दाना हथेली पर रगड़ने से आसानी से टूट जाये तो शुद्ध है।
2. 1 ग्राम उर्वरक परखनली में लें, 5 मिली. आसुत जल मिलायें तथा अच्छी तरह हिलाये और छानें तथा 5-6 बूँद सिल्वर नाइट्रेट घोल मिलायें यदि पीला यदि पीला अवक्षेप है एवं घुल जाये तो फास्फेट की उपस्थिति है, यदि नहीं तो पदार्थ संदिग्ध है।
3. आधे चम्मच उर्वरक को 5 मिली. आसुत जल में घोलें, ऊपरके निथरे भाग को दूसरी परखनली में लेकर 15-20 बूँदें सिल्वर नाइट्रेट के घोल को मिलायें, हल्का दूधिया अवक्षेप प्राप्त होता है, इसमें 2-3 बूँद तनु कास्टिक सोडा मिलाने पर पीला  अवक्षेप आता है तो उर्वरक शुद्ध है यदि ऐसा नहीं होता तो शुद्ध समझें।

5. जिंक सल्फेट

    सूक्ष्म पोषक तत्व जिंक प्रदान करने वाला यह उर्वरक है। धान-गेंहू फसल चक्र वाले क्षेत्रो में इस तत्त्व की कमी देखी जा रही है। इसकी सुधता की जांच निम्नानुसार की जा सकती है।
1. एक  ग्राम उर्वरक परखनली में लें, 5 मि .ली . आसुत जल मिलायें, अच्छी तरह हिलायें, फिल्टर पेपर में छाने 8-10 बूँद तनु सोडियम हाइड्राक्साइड का  घोल मिलायें, सफेद पदार्थ बनता है, तब 10-12 बूंदें सांद्र सोडियम हाइड्राक्साइड घोल मिलायें अगर अवक्षेप घुल जायें तो पदार्थ शुद्ध है अन्यथा नहीं।
2. पानी में घुलनशील लेकिन इसका घोल यूरिया या एम.ओ.पी. की तरह ठंडा नही होता तो शुद्ध पदार्थ है।
3. डी.ए.पी. के घोल मे जिंक सल्फेट के घोल को मिलाने पर थक्केदार घना अवक्षेप बन जाता है, जबकि मैग्नीशियम सल्फेट के साथ ऐसा नहीं होता।

फसलोत्पादन मे पोषक तत्वो के कार्य व कमी के लक्षण

                                                                      डॉ . गजेन्द्र सिंह तोमर

                                         प्रमुख  पोषक तत्वो के कार्य व कमी के लक्षण

                जीव जगत में जिस तरह से प्रत्येक प्राणी को अपना जीवन निर्वाह करने के लिए कुछ पोषक तत्वों की आवश्कता होती है, उसी तरह से पौधों को भी अपनी वृद्धि, प्रजनन, तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए कुछ पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है । इन पोषक तत्वों के उपलब्ध न होने पर पौधों की वृद्धि रूक जाती है यदि ये पोषक तत्व एक निश्चित समय तक न मिलें तो पौधों की मृत्यु आवश्यम्भावी हो जाती है । पौधे भूमि से जल तथा खनिज-लवण शोषित करके वायु से कार्बन डाई-आक्साइड प्राप्त करके सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपने लिए भोजन का निर्माण करते हैं । फसलों के पौधों को प्राप्त होने वावली कार्बन-डाई-आक्साइड तथा सूर्य के प्रकाश पर किसान या अन्य किसी का नियन्त्रण सम्भव नहीं हैं लेकिन कृषक फसल को प्राप्त होने वाले जल तथा खनिज-लवणों को नियन्त्रित कर सकता है । वैज्ञानिक परीक्षणो के आधार पर 17 तत्वों को पौधो के लिए आवश्यक निरूपित किया गया है, जिनके बिना पौधे की वृद्धि-विकास तथा प्रजनन आदि क्रियाएं सम्भव नहीं हैं। इनमें से मुख्य तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन , नाइट्रोजन, फॉस्फोरस  और पोटाश है। इनमें से प्रथम तीन तत्व पौधे वायुमंडल से ग्रहण कर लेते हैं। नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश को पौधे अधिक मात्रा में ग्रहण करते हैं अतः इन्हें खाद-उर्वरक के रूप में प्रदाय करना आवश्यक है। इसके अलावा कैल्सियम, मैग्नीशियम और सल्फर की आवश्यकता कम होती है अतः इन्हें गौण पोषक तत्व के रूप मे जाना जाता है इसके अलावा लोहा, तांबा, जस्ता, मैंग्नीज, बोरान, मालिब्डेनम, क्लोरीन व निकिल की पौधो को अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है। पौधों के लिए आवश्यक महत्पूर्ण पोषक तत्वो के कार्य व कमी के लक्षण प्रस्तुत हैं।
(1) नत्रजन के प्रमुख कार्य
नाइट्रोजन से प्रोटीन बनती है जो जीव  द्रव्य का अभिन्न अंग है  तथा पर्ण हरित के निर्माण में भी भाग लेती है । नाइट्रोजन का पौधों की वृद्धि एवं विकास में योगदान इस तरह से है-
;1.    यह पौधों को गहरा हरा रंग प्रदान करता है । 
;2.     वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा मिलता है ।  
;3.     अनाज तथा चारे वाली फसलों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाता है । 
;4.     यह दानो  के बनने में मदद करता है ।   

नत्रजन-कमी के लक्षण
1. पौधों मे प्रोटीन की कमी होना व हल्के रंग का दिखाई पड़ना । निचली पत्तियाँ पड़ने लगती है, जिसे क्लोरोसिस कहते हैं।
2. पौधे की बढ़वार का रूकना, कल्ले कम बनना, फूलों का कम आना।
3. फल वाले वृक्षों का गिरना। पौधों का बौना दिखाई पड़ना। फसल का जल्दी पक जाना।
(2) फॉस्फोरस  के कार्य
1. फॉस्फोरस  की उपस्थिति में कोशा विभाजन शीघ्र होता है। यह न्यूक्लिक अम्ल, फास्फोलिपिड्स व फाइटीन के निर्माण में सहायक है। प्रकाश संश्लेषण में सहायक है।
2. यह कोशा की झिल्ली, क्लोरोप्लास्ट तथा माइटोकान्ड्रिया का मुख्य अवयव है।
3. फास्फोरस मिलने से पौधों में बीज स्वस्थ पैदा होता है  तथा बीजों का भार बढ़ना, पौधों में रोग व कीटरोधकता बढती है.
 4.फास्फोरस के प्रयोग से जड़ें तेजी से विकसित तथा सुद्दढ़ होती हैं । पौधों में खड़े रहने की क्षमता बढ़ती है ।
5. इससे फल शीघ्र आते हैं, फल जल्दीबनते है व दाने शीघ्र पकते हैं।
6. यह नत्रजन के उपयोग में सहायक है तथा फलीदार पौधों में इसकी उपस्थिति से जड़ों की ग्रंथियों का विकास अच्छा होता है ।
फॉस्फोरस-कमी के लक्षण
1. पौधे छोटे रह जाते हैं, पत्तियों का रंग हल्का बैगनी या भूरा हो जाता है।फास्फोरस गतिशील होने के
    कारण पहले ये लक्षण पुरानी (निचली) पत्तियों पर दिखते हैं । दाल वाली फसलों में
    पत्तियां  नीले हरे रंग की हो जाती हैं ।
2. पौधो की जड़ों की वृद्धि व विकास बहुत कम होता है कभी-कभी जड़े सूख भी   जाती हैं ।  
3. अधिक कमी में तने का गहरा पीला पड़ना, फल व बीज का निर्माण सही न होना।
4. इसकी कमी से आलू की पत्तियाँ प्याले के आकार की, दलहनी फसलों की पत्तियाँ नीले रंग की तथा चौड़ी  पत्ती वाले पौधे में पत्तियों का आकार छोटा रह जाता है।
(3) पोटैशियम के कार्य
1. जड़ों को मजबूत बनाता है एवं सूखने से बचाता है। फसल में कीट व रोग प्रतिरोधकता बढ़ाता है। पौधे को गिरने से बचाता है।
2. स्टार्च व शक्कर के संचरण में मदद करता है। पौधों में प्रोटीन के निर्माण में सहायक है।
3. अनाज के दानों में चमक पैदा करता है। फसलो की गुणवत्ता में वृद्धि करता है । आलू व अन्य सब्जियों के स्वाद में वृद्धि करता है । सब्जियों के पकने के गुण  को   सुधारता है । मृदा में नत्रजन के कुप्रभाव को दूर करता है।
पोटैशियम-कमी के लक्षण
1. पत्तियाँ भूरी व धब्बेदार हो जाती हैं तथा समय से पहले गिर जाती हैं।
2. पत्तियों के किनारे व सिरे झुलसे दिखाई पड़ते हैं।
3. इसी कमी से मक्का के भुट्टे छोटे, नुकीले तथा किनारोंपर दाने कम पड़ते हैं। आलू में कन्द छोटे तथा जड़ों का  विकास कम हो जाता है
4. पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया कम तथा श्वसन की क्रिया अधिक होती है।
(4) कैल्सियम के कार्य
1. यह गुणसूत्र का संरचनात्मक अवयव है। दलहनी फसलों में प्रोटीन निर्माण के लिए आवश्यक है।
2. यह तत्व तम्बाकू, आलू व मूँगफली के लिए अधिक लाभकारी है।
3. यह पौधों में कार्बोहाइड्रेट संचालन में सहायक है।
कैल्सियम-कमी के लक्षण
1. नई पत्तियों के किनारों का मुड़ व सिकुड़ जाना। अग्रिम कलिका का सूख जाना।
2. जड़ों का विकास कम तथा जड़ों पर ग्रन्थियों की संख्या में काफी कमी होना।
3. फल व कलियों का अपरिपक्व दशा में मुरझाना।
(5) मैग्नीशियम के कार्य
1. क्रोमोसोम, पोलीराइबोसोम तथा क्लोरोफिल का अनिवार्य अंग है।
2. पौधों के अन्दर कार्बोहाइड्रेट संचालन में  सहायक है।
3. पौधों में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा के निर्माण मे सहायक है।
4. चारे की फसलों के लिए महत्वपूर्ण है।
मैग्नीशियम-कमी के लक्षण
1. पत्तियाँ आकार में छोटी तथा ऊपर की ओर मुड़ी हुई दिखाई पड़ती हैं।
2. दलहनी फसलों में पत्तियो की मुख्य नसों के बीच की जगह का पीला पड़ना।
(6) गन्धक (सल्फर) के कार्य
1. यह अमीनो अम्ल, प्रोटीन (सिसटीन व मैथिओनिन), वसा, तेल एव विटामिन्स के निर्माण में सहायक है।
2. विटामिन्स (थाइमीन व बायोटिन), ग्लूटेथियान एवं एन्जाइम 3ए22 के निर्माण में भी सहायक है। तिलहनी फसलों में तेल की प्रतिशत मात्रा बढ़ाता है।
3. यह सरसों, प्याज व लहसुन की फसल के लिये आवश्यक है। तम्बाकू की पैदावार 15-30प्रतिशत तक बढ़ती है।
गन्धक-कमी के लक्षण
1. नई पत्तियों का पीला पड़ना व बाद में सफेद होना तने छोटे एवं पीले पड़ना।
2. मक्का, कपास, तोरिया, टमाटर व रिजका में तनों का लाल हो जाना।
3. ब्रेसिका जाति (सरसों) की पत्तियों का प्यालेनुमा हो जाना।
(7) लोहा (आयरन) के कार्य
1. लोहा साइटोक्रोम्स, फैरीडोक्सीन व हीमोग्लोबिन का मुख्य अवयव है।
2. क्लोरोफिल एवं प्रोटीन निर्माण में सहायक है।
3. यह पौधों की कोशिकाओं में विभिन्न ऑक्सीकरण-अवकरण क्रियाओं मे उत्प्रेरक  का कार्य करता है। श्वसन क्रिया में आक्सीजन का वाहक है।
लोहा-कमी के लक्षण
1. पत्तियों के किनारों व नसों का अधिक समय तक हरा बना रहना।
2. नई कलिकाओं की मृत्यु को जाना तथा तनों का छोटा रह जाना।
3. धान में कमी से क्लोरोफिल रहित पौधा होना, पैधे की वृद्धि का रूकना।
(8) जस्ता (जिंक) के कार्य
1. कैरोटीन व प्रोटीन संश्लेषण में सहायक है।
2. हार्मोन्स के जैविक संश्लेषण में सहायक है।
3. यह एन्जाइम (जैसे-सिस्टीन, लेसीथिनेज, इनोलेज, डाइसल्फाइडेज आदि) की क्रियाशीलता बढ़ाने में सहायक है।  क्लोरोफिल निर्माण में उत्प्रेरक  का कार्य करता है।
जस्ता-कमी के लक्षण
1. पत्तियों का आकार छोटा, मुड़ी हुई, नसों मे निक्रोसिस व नसों के बीच पीली धारियों का दिखाई पड़ना।
2. गेहूँ में ऊपरी 3-4 पत्तियों का पीला पड़ना।
3. फलों का आकार छोटा व बीज कीपैदावार का कम होना।
4. मक्का एवं ज्वार के पौधों में बिलकुल ऊपरी पत्तियाँ सफेद हो जाती हैं।
5. धान में जिंक की कमी से खैरा रोग हो जाता है। लाल, भूरे रंग के धब्बे दिखते हैं।
(9) ताँबा (कॉपर ) के कार्य
1. यह इंडोल एसीटिक अम्ल वृद्धिकारक हार्मोन के संश्लेषण में सहायक है।
2. ऑक्सीकरण-अवकरण क्रिया को नियमितता प्रदान करता है।
3. अनेक एन्जाइमों की क्रियाशीलता बढ़ाता है। कवक रोगो के नियंत्रण में सहायक है।
ताँबा-कमी के लक्षण
1. फलों के अंदर रस का निर्माण कम होना। नीबू जाति के फलों में लाल-भूरे धब्बे अनियमित आकार के दिखाई देते हैं।
2. अधिक कमी के कारण अनाज एवं दाल वाली फसलों में रिक्लेमेशन नामक बीमारी होना।
(10) बोरान के कार्य
1. पौधों में शर्करा के संचालन मे सहायक है। परागण एवं प्रजनन क्रियाओ में सहायक है।
2. दलहनी फसलों की जड़ ग्रन्थियों के विकास में सहायक है।
3. यह पौधों में कैल्शियम एवं पोटैशियम के अनुपात को नियंत्रित करता है।
4. यह डी.एन.ए., आर.एन.ए., ए.टी.पी. पेक्टिन व प्रोटीन के संश्लेषण में सहायक है
बोरान-कमी के लक्षण
1. पौधे की ऊपरी बढ़वार का रूकना, इन्टरनोड की लम्बाई का कम होना।
2. पौधों मे बौनापन होना। जड़ का विकास रूकना।
3. बोरान की कमी से चुकन्दर में हर्टराट, फूल गोभी मे ब्राउनिंग या खोखला तना एवं तम्बाखू में टाप-     सिकनेस नामक बीमारी का लगना।
(11) मैंगनीज के कार्य
1. क्लोरोफिल, कार्बोहाइड्रेट व मैंगनीज नाइट्रेट के स्वागीकरण में सहायक है।
2. पौधों में आॅक्सीकरण-अवकरण क्रियाओं में उत्प्रेरक का कार्य करता है।
3. प्रकाश संश्लेषण में सहायक है।
मैंगनीज-कमी के लक्षण
1. पौधों  की पत्तियों पर मृत उतको के धब्बे दिखाई पड़ते हैं।
2. अनाज की फसलों में पत्तियाँ भूरे रग की व पारदर्शी होती है तथा बाद मे उसमे ऊतक गलन रोग पैदा होता है। जई में भूरी चित्ती रोग, गन्ने का अगमारी रोग तथा मटर का पैंक चित्ती रोग उत्पन्न होते हैं।
(12) क्लोरीन के कार्य
1. यह पर्णहरिम के निर्माण में सहायक है। पोधो में रसाकर्षण दाब को बढ़ाता है।
2. पौधों की पंक्तियों में पानी रोकने की क्षमता को बढ़ाता है।
क्लोरीन-कमी के लक्षण
1. गमलों में क्लोरीन की कमी से पत्तियों में विल्ट के लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
2. कुछ पौधों की पत्तियों में ब्रोन्जिंग तथा नेक्रोसिस रचनायें पाई जाती हैं।
3. पत्ता गोभी के पत्ते मुड़ जाते हैं तथा बरसीम की पत्तियाँ मोटी व छोटी दिखाई पड़ती हैं।
(13) मालिब्डेनम के कार्य
1. यह पौधों में एन्जाइम नाइट्रेट रिडक्टेज एवंनाइट्रोजिनेज का मुख्य भाग है।
2. यह दलहनी फसलों में नत्रजन स्थिरीकरण, नाइट्रेट एसीमिलेशन व कार्बोहाइड्रेट मेटाबालिज्म क्रियाओ में सहायक  है।
3. पौधों में विटामिन-सी व शर्करा के संश्लेषण में सहायक है।
मालिब्डेनम-कमी के लक्षण
1. सरसों जाति के पौधो व दलहनी फसलों में मालिब्डेनम की कमी के लक्षण जल्दी दिखाई देते हैं।
2. पत्तियों का रंग पीला हरा या पीला हो जाता है तथा इसपर नारंगी रंग का चितकबरापन दिखाई पड़ता है।
3. टमाटर की निचली पत्तियों के किनारे मुड़ जाते हैं तथा बाद में मोल्टिंग व नेक्रोसिस रचनायें बन जाती हैं।
4. इसकी कमी से फूल गोभी में व्हिपटेल एवं मूली मे प्याले की तरह रचनायें बन जाती हैं।
5. नीबू जाति के पौधो में माॅलिब्डेनम की कमी से पत्तियों मे पीला धब्बा रोग लगता है।